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बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार

बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी बेला,
नारी जगत साधना पथ ।
मृदुल मधुर भाव तरंगिणी,
खुशहाल वैवाहिकी मनोरथ ।
करवा चौथ व्रत अद्भुत अनूप,
सर्वत्र दांपत्य खुशियां बहार ।
बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार ।।


इतिहास व्यंजना अनुपम,
नारी पतिव्रता अग्नि परीक्षा ।
सुफलित व्रत स्तुति दिव्यता ,
वचन अटल जीवन रक्षा ।
तदंतर परंपरा भव्य निर्वहन,
परिणय प्रीत दिव्य निखार ।
बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार ।।


कर कमल शोभित हिना,
देह मनमोहक परिधान ।
मुस्कान मोहिनी धर अधर,
आलिंगन धर्म आस्था विधान ।
परिवेश उत्संग चमक दमक,
उपासना अंतर आनंद अपार ।
बना रहे सौभाग्य, सजा रहे श्रृंगार ।।


सुख समृद्ध वैवाहिक जीवन,
समानता अभिवंदन अहम ।
परस्पर अथाह स्नेह सम्मान,
संबंध आत्मिक आह्लाद पैहम ।
पुलकित प्रफुल्लित लोकरंग,
अंतःकरण शुभ मंगल सरित धार ।
बना रहे सौभाग्य, सजा रहे श्रृंगार ।।


* कुमार महेंद्र*

(स्वरचित मौलिक रचना)


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