प्रेयसी
सुरेन्द्र कुमार रंजनदिल ने चाहा जिसे मन ने ठुकरा दिया,
मन ने चाहा जिसे दिल ने ठुकरा दिया।
दिल ने बहला दिया मन ने फुसला दिया,
क्या जुलम कर दिया क्या सितम ढा दिया।
दिल ने मन से कहा छोड़ जिद अब जरा,
जो मैं कहता हूं अब साथ दे तू मेरा।
मेरी चाहत को अब ना तू ठुकरा जरा,
प्यार करता हूँ मैं, तू मुस्करा दे जरा ।
दिल से दिल का मिलन तू होने दे जरा,
मन से मन का संगम तू होने दे जरा,
अधरों का मिलन तू होने दे जरा,
प्यास दिल का शमन, तू होने दे जरा ।
दिल की मल्लिका मेरी चाँद का टुकड़ा,
जब से देखा है मैंने उसका मुखड़ा ।
गया हूँ भूल सब अपना दुखड़ा,
रहा याद ना अब कोई दूसरा मुखड़ा ।
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