भारतीय मुसलमान का जिहाद
लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
याह्या सिनवार मारा गया - टीवी के बड़े पर्दे पर यह समाचार आए जा रहा था। मुझे जिज्ञासा हुई कि आखिर कौन था ये जो इतना हंगामा मचा हुआ है। मालूम पड़ा कि इजरायल पर 7 अक्टूबर 2023 पर हुए हमले का यह मुख्य सूत्रधार था। फिर मालूम पड़ा कि मुस्लिम देशों में खासा रोष है, लोग उबल रहे हैं और इजरायल का नामोनिशान मिटाने की बात कर रहे हैं। तभी मेरे मोहल्ले का अब्दुल दिखाई दिया।
मैने अब्दुल से पूछा भाई तुम क्यों उबल रहे हो? ये तो तुम्हारी लड़ाई भी नहीं है। अब्दुल बोला -जाती में बंटे हिंदुओं तुम क्या समझोगे। वो हमारा दीन का सिपाही था। जिहाद का झंडाबरदार था। मैने कंधे ऊंचकाए और कहा कि ऐसे लोग जो दूसरों की इज्जत नहीं करते वो ऐसे ही मरते हैं।
अब्दुल ने गर्व से कहा- 7 अक्टूबर को जो हमने 1200 मारे थे और 254 बंधक बनाए थे उस हमले का यही कमांडर था। सोचो उसने कितना अच्छा काम किया था।
अच्छा फिर जो 40 हजार मुसलमान बदले में मारे गए और पूरी गाजा को धरती जैसा चपटा बनाया गया उसका श्रेय कौन लेगा? अब्दुल बोला इस्लाम के लिए कुछ कुर्बानी तो देनी होगी। मैने कहा कि भाई इस्लाम का इससे क्या लेना देना है। गाजा में तो हमास की ही सरकार थी। लोग मजे में रह रहे थे। इजरायली भी निश्चिंत थे, फलस्तीनियों को काम पर भी रख रहे थे। मुसलमान अपना रोजा नमाज वजू और ऊंट के मूत की चुस्कियां भी आराम से ले रहा था फिर जबरदस्ती का हमला क्यों किया। अब्दुल बोला तुम नहीं समझोगे हमें इस धरती को पूरा इस्लामी बनाना है। मैने कहा अरे 57 देश तो हैं ना वहीं क्यों नहीं खुश रहते, सभी दीन को मानने वाले हैं।
वो बोला तुम काफिर कभी नहीं समझोगे। जब तक एक भी काफिर जिंदा है इस्लामी हुकूमत अधूरी है।
तो फिर दुनिया भर में रोते क्यों घूमते हो कि हमें, हमारी औरतों, बच्चों को मारा। मदद करो। तुमने भी तो वही किया।
अब्दुल - नहीं हमारा जायज है हमारी किताब में लिखा है।
अरे कैसे जायज हो गया जब मोहम्मद थे तब तो किसी को लिखना पढ़ना भी नहीं आता था। फिर कुरान उनके जाने के 150 साल बाद कैसे नाजिल हुई। ये अचानक जिहाद कहां से आ गया। मोहम्मद के समय में तो बस तीन ही लोगों ने इस्लाम कबूला था। यह तक कि उनके मरने के बाद भी सभी यही लेकर लड़ रहे थे कि अगला मुखिया कौन होगा। उनकी लाश पड़ी थी और ये लड़ाई चल रही थी।
वो सब हमें नहीं पता, हमें बताया नहीं गया है।
अच्छा बताओ जो 40 हजार गाजा में मरे, 5 हजार सीरिया और लेबनान में मरे, ये सब क्या काफिर थे।
अब्दुल - नहीं वो तो सभी शहीद मुसलमान थे। हम सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे।
लेकिन इस सरकार ने क्या किया है जो लड़ाई हो रही है वो तो यहां से दस हजार किलोमीटर दूर हो रही है। अच्छा एक काम करो अपने अब्बू से कहो कि तुम्हें वो गाजा सीरिया लेबनान या ईरान भेज दें ताकि तुम भी इस लड़ाई में भाग ले सको, आखिर दीन का सवाल है।
अब्दुल बोला मैं क्या करूंगा वहां जाकर, मुझे तो उनकी भाषा खानपान और समाज का भी कुछ पता नहीं। फिर मेरे अब्बू के पास इतने पैसे भी नहीं हैं।
तो भाई मेरे चिल कर ना क्यों आग मूत रहा है।
नहीं हम यहां काफिरोंको छोड़ेंगे नहीं।
मैने सोचा चलो इसको कहीं पहुंचा देते हैं।
सामने से थोड़ी देर में एक पुलिस की गाड़ी आती दिखी दी। मुझे रोककर पूछने लगे किसी की मौत हुई है क्या? मैने कहा देख लो मुझे तो पता नहीं पर उधर एक आदमी पड़ा है, पता नहीं जिंदा है कि नहीं।
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