कभी लडें हम प्याज पर, कभी तेल में झोल,
महीने में कुल खर्चा बढे, दस बीस के मोल।दाल सब्जियाँ सस्ती हुयी, रोता कहे किसान,
मँहगाई से देश त्रस्त है, यह नेताओं के बोल।
होटल भी खाली नही, नही ढाबे पर ठाँव,
मिनरल वाटर पी कर कहें, पानी है अनमोल।
सीधी साधी गरीब की, बिटिया सकल सुजान,
ब्युटी पार्लर में खर्च कर, दिखने लगी सुडौल।
मिलती नही शोरूम में, कार हाथ के हाथ,
महँगी सबसे चाहिये, न मोल करें न तौल।
नही मॉल खाली दिखें, ब्रांडेड का है शोर,
जूतों के शो रूम का, बदल गया भूगोल।
खुलने लगे नित नये, ज्वैलर्स के शोरूम,
हीरे के जेवर बिकें, भीड लगी धकधौल।
अ कीर्तिवर्धन
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