जीवन की भूल
माँ काली के आशीर्वचनों से अभिभूत,हो गया भूलवश कुछ ऐसी करतूत ।
नहीं रहा मेरा मन मस्तिष्क पर नियंत्रण,
जब मिला मुझे अधरों व कपोलों का निमंत्रण।
क्षण भर के लिए तन आनंदित हुआ,
पर जीवन भर के लिए मन कलंकित हुआ ।
भरोसा और विश्वास का सर्वनाश हुआ,
इज्जत लुटाकर गलतियों का एहसास हुआ।
वर्षों का रिश्ता पल में तार-तार हुआ,
भरी बाजार में मानवता शर्मसार हुआ।
न रही प्रतिष्ठा, जीना दुश्वार हुआ,
बची-खुची जिन्दगी भी बेकार हुआ।
नहीं भूलूंगा 21 अगस्त 2018 की रात ,
मेरे दिल पर हुआ कुछ ऐसा वज्रपात,
नहीं रहा दिल और दिमाग पर जोर,
अंततः टूट गई अनमोल रिश्ते की डोर।
⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजन
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