सबसे बुड़बक हमहीं बानी,
काहे की हम घरे रहतानी।सब कोई कमाये खातिर,
घर से बाहर निकल गइल।
घर के इज्जत सम्हारे खातिर,
हमरा के घरे बैठा गइल।
हमहूं पढ़नी, हमहूं लिखनी,
कमाये के हुनर हमहूं सिखनी।
पुरखन के लाज बचावे खातिर,
त्याग करे के जिम्मा माथे लिहनी।
घर के हम बड़ा बेटा रहनी,
सबकर कहल सुनत रहनी।
केहू ज्ञान सिखावल,
केहू बुद्दू बनावल,
चुपचाप हम सब कुछ सहनी।
गाँव घर का झमेला से,
हित पहुनई का झमेला से,
हम कबहूँ ना घबड़इनी।
सब कुछ सह के, चुप रह के,
घर के नैया खेवत गइनी।
बरिसों तक केहू चिंता ना कइल,
घर दुआर सब ठीक रह गइल।
अब सबका एह में हिस्सा चाहीं,
हम हो गइनी राह के राही।
घर घर के इहे कहानी बाटे,
कहे में सब लोग सकुचाते।
जे जोगवले से बुड़बक बन गइले,
बिना कुछ कइले, बाकी सब लोग
नीमन आ होशियार हो गइले। जय प्रकाश कुवंर
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