गुरु ज्ञान अहम है जीवन में ,
अपना ही कर्म निभाने को ।गर्व होता हमको बहुत यह ,
सनातन धर्म कहलाने को ।।
वेद शास्त्र व उपनिषद ग्रंथ ,
हमें पढ़ना बहुत जरूरी है ।
मर जाऍंगे या मिट जाऍंगे ,
बनाना नहीं इससे दूरी है ।।
पीछे पड़े हमारे ही दुश्मन ,
हमारा अस्तित्व मिटाने को ।
सनातन का गौरव मिटाकर ,
निज बहुलता ही लाने को ।।
घटी घटना श्रद्धानंद जी को ,
उन्हीं की पुत्री भटक रही थी ।
अपने धर्म में रहकर ही वह ,
अन्य धर्म में अटक रही थी ।।
गाते सुना जब ईसा स्तुति ,
तब उनका यह ज्ञान खुला ।
भटक रही है ये मेरी बच्ची ,
मस्तिष्क हुआ धुला धुला ।।
उपाय सूझा शीघ्र उन्हें तब ,
प्रथम गुरुकुल विस्तार किया ।
वेद उपनिषद शास्त्र पुराण ,
वैदिक पाठ साकार किया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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