एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया।
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे,द्रोपदी का फिर चीर हरण हो गया।
अनैतिकता के सामने नैतिकता का ध्वज,
एक बार फिर तार- तार हो गया।
भीष्म के धवल वस्त्र, फिर भी न मैले हो सके,
सिंहासन की निष्ठा ने, उनको फिर बचा लिया।
धृतराष्ट्र अंधे हैं, गांधारी ने पट्टी बाँधी है,
गुरु द्रोण निशब्द हैं, सत्ता उनको भी प्यारी है।
संजय नीति के ज्ञाता हैं, उनको सत्ता से निष्ठा,
कर्ण वीर सहनशील, दुर्योधन से उनकी यारी है।
चक्रव्यूह भेदन के नियम, सब बदल गए हैं,
अर्जुन-भीम सभी पांडव, नियम पर चलते रहे।
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया,
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया।
शकुनी की कुटिल चालों से सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी अब मानो निशस्त्र हैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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