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धनुषकोटि सागर तट से

धनुषकोटि सागर तट से

डॉ रामकृष्ण मिश्र
रत्नाकर की उछल- कूद क़ो मस्त देखने वाले लोग ।
अपने चित्र उतरवाने में व्यस्त देखने वाले लोग।।

तट पर बिछे बालुका बिस्तर छूने को आतुर लहरें
उन्हें कैद करने में भी अभ्यस्त लहसने वाले लोग।।

लहरों की गति- मति पढ़ने को दृढ़ प्रतिज्ञ सी कुछ आँखें।
जल में खड़े कई जोडे़ पग से इतराने वाले लोग।।

लगता लहरें छू लेंगी नीले पर्दे आकाश के
इस उछाल के बढे हौसले से लगते कतराने लोग।।

यहाँ जीविका खड़ी आँकती शैतानी का उत्सव मन।
शंख सीपियों के उत्पादन मन सै लगे परखने लोग।।

टोटा नहीं खाद्य की चिन्ता फल से मूँगफली सब कुछ।
रत्न बेचती लक्ष्मी बुढिया ठगने और ठगाने लोग।।
रामकृष्ण
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