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अपनो खो लूट रहे

अपनो खो लूट रहे

अपने बनकर देखो तुम
अपनो खो ही लूट रहे।
मान सम्मान अपना खोकर
अपना ही घर क्यों फूक रहे।।

बाँट रहे हो अपने आपखो
फिर भी गलती मनात नईयों।
देश की कमजोरीयों पर तुम
खूब ही बार करत हो।
गलत बात खो भी तुम देखो
कैसे सही बातलात हो।
अपनी गलतियों खो तुम
कैसे खूब छुपात हो।।

देश हमारो सोने जैसे
और स्वर्ग जैसे सुंदर है।
फिर भी अपनो देश छोड़कर
औरों के तुम गुणगान करत।
तनक शर्म भी आत नही तुमखो
ओइ देश की करो बुराई।
जोन देश में रहत और खाऊत
ओहि देश की करो बुराई।।

अपने और अपनो खो देखो
कैसे तुमने लूट लिया।
लूटका माल रखकर अपने
दोस्तो में ही बाँट दिया।
अमन चैन से रहने वालों के
घर में आग तुमने लगा दिया।
कैसे तुम इंसान हो और
कैसी तुम्हारी इंसानियत।।

अपने बनकर देखो तुम
अपनो खो ही लूट रहे।
मान सम्मान अपना खोकर
अपना ही घर क्यों फूक रहे।।

जय जिनेंद्र


संजय जैन "बीना" मुंबई
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