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हथेली पर भाग्य जो भी लिये चलते हैं।

हथेली पर भाग्य जो भी लिये चलते हैं।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हथेली पर भाग्य जो भी लिये चलते हैं।
स्वाभिमानी जिन्दगी भी जिये चलते हैंं।।


कदम की दृढ़ता उन्हीं को दूर ले जाती।
जोर जो सत्कर्म पर ही दिये चलते हैंं।।


स्नेह का भी जिन्दगी से है घना रिश्ता।
विना इसके कहाँ देखा दिए जलते हैंं


भूख भी क्या चीज होती है भला कहिए।
कुछ विना खाये- विलट विन पिये टगते हैं ।।


अस्पतालों में गरीबी नाचती नंगी।
रुग्ण- सेवा कौन हैं विन लिये करते हैं।??


आज क़ोठी - महल वाले भी दुखी सब हैं। 
सब के सब दुष्कर्म अपने किये डरते हैं ।।
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