दीप कहाँ से आए
मार्कण्डेय शारदेय:रात अमावस की होने से,
कुमुदबन्धु के घर सोने से,
ना जाने ये किस कोने से
निकल वहाँ से आए।
ये दीप कहाँ से आए?
क्या हैं ये अम्बर के तारे
तम पसरा है देख पधारे,
करने को निज छवि से न्यारे
भूमण्डल पर छाए?
ये दीप कहाँ से आए?
अथवा, विधु-भास्कर को सुरगण,
तोड़-फोड़कर करके कण-कण
मुट्ठी में ले सकल शकल को
ऊपर से बरसाए?
ये दीप कहाँ से आए?
अथवा, आज निशा दुल्हन बन,
जाती है निज श्वसुर-निकेतन,
रोने से जो गिरते आँसू,
वे ही भू पर छाए?
ये दीप कहाँ से आए?
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