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तुम आदमी या फरिश्ता हो|

तुम आदमी या फरिश्ता हो|

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
तुम आदमी या फरिश्ता हो,हम क्या कहें ।
अज खुशबू गुलनुमा रिश्ता हो,हम क्या कहें।


नायाब हस्ती हो, रश्क करे फरिश्ता भी ,
फिर भी इंसानियत से गुज़ाश्ता हो,हम क्या कहें।


जो जितना तेज चले,जिंदगी का पैमाना ,
इस दौड़ में क्यों आहिस्ता हो,हम क्या कहें।


न कुरआन का फहम,न भागवत की तमीज़,
क्या खूब ही तुम शाइस्ता हो ,हम क्या कहें।


सियासत हिटलरी औ भेस है गाँधियाना,
जन्नत से यह दोज़ख का रिश्ता,हम क्या कहें।


ओंकारी तिलक औ दाढ़ी है साधुआना, 
मुकम्मल झूठ के सरिश्ता हो,हम क्या कहें।

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