कुछ पल मौन होना चाहिए
भटक ना जाऊँ विजन वन में,
लक्ष्यपथ से न हो जाऊँ विलग,
अनन्त व्योम को छूने में,
अचला से न हो जाऊँ अलग,
शलभ चुपचाप लेता अग्नि समाधि,
मधुप को कलियन की जकड़न प्यारी।
झंझा के कंपन में साहिल रहता अटल,
सुमिरन की ज्वाला से बनता मनु सकल।
चिनगारियों में तपा स्वर्ण फिर कुंदन कौन होना चाहिए?
हाँ, मुखर भाव से पृथक कुछ पल मौन होना चाहिए...
दृग को बना स्वप्न का आलय,
भावों के मृदु अंजन सांवले,
श्वेत पट पर शब्दों को रचूंगी,
निशा में उज्ववल प्रात को गढूंगी,
सत्य कद ऊँचा दिग्भ्रमित मायाजाल बौन होना चाहिए,
हाँ,मुखर भाव से पृथक कुछ पल मौन होना चाहिए...
डॉ रीमा सिन्हा (लखनऊ)
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