प्यार का कर्ज
चाँद सितारे चमक रहे है।नीले गगन में देखो तुम।
प्रीतम प्यारे को बुलाने।
महक उठा है घर आँगन।।
सहज लग रहा है हमको।
आज हमारा घर आँगन।
फूल-पत्ती और डालियाँ से
झूम उठा है घर आँगन।।
रखे कदम जब से तुमने
मेरी घर आँगन में प्रीतम।
महक उठा है मेरा जीवन
देखो अपनी आँखो से प्रीतम।।
कर्ज तुम्हारा है हम पर।
जिसको उतार न पाऊँगा।
अगले जीवन में मिलकर के।
शायद इस कर्ज उतार पाऊँगा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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