सपने हैं ये सजते रहते हैं आए दिन
ज्योतींद्र मिश्र
सपने हैं ये सजते रहते हैं आए दिन
अपने हैं ये, आते रहते हैं आए दिन
भूल गए जो लोग भला क्यों लौटेंगे
रिश्ते हैं ये मिटते रहते हैं आए दिन
खुद को जिंदा रखने की ,जिद ठाने
पत्थर हैं ये गाते रहते हैं आए दिन
उनका दिया गम, दिल के करीब है
यादें हैं ये आते रहते हैं आए दिन
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