पाँव डगमग से मगर चलते रहे।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
पाँव डगमग से मगर चलते रहे। कुछ न कुछ तो लोग थे कहते रहे। ।।
समय कुसमय आँधियाँ आती रहीं।
मुस्कुराते थपेड़े सहते रहे।।
बगूले भी कम नहीं शैतान थे।
बरगदों से मौन बस अड़ते रहे।।
चाँदनी की चमक का अब क्या करूँ।
आज तक तो धूप से लड़ते रहे।।
सुलगती संभावनाओं के लिए।
अपरिचित आवेग से मिलते रहे।।
प्रश्न अब यह नहीं कैसी है सजा।
आस्थाओं की कथा पढ़ते रहे।।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com