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शब्दों का खेल, भावों का संगम

शब्दों का खेल, भावों का संगम

ज़रा शब्दों को बदल कर देख,
कैसे बदलते हैं भावों के रंग।
"तू देख कर न मुस्कुरा" से,
"बस मुस्कुरा के देख" में,
कितना बड़ा अंतर है, ये जान ले।

पहले शब्दों में छिपा है आदेश,
एक हुक्म, एक इरादा।
दूसरे में है निमंत्रण,
एक आग्रह, प्यारा सा अपनापन।

पहले में है दूरी का अहसास,
एक खाई, एक मजबूरी।
दूसरे में है निकटता का भाव,
एक जुड़ाव, एक खुशी।

पहले में है अपेक्षा,
एक निर्णय, एक शर्त।
दूसरे में है स्वतंत्रता,
एक भावना, एक उम्मीद।

तो आओ, शब्दों के खेल में खो जाएं,
नए अर्थों की खोज में निकल पड़ें।
"बस मुस्कुरा के देख" में,
ज़िंदगी की एक नई कहानी लिखें।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"

(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)

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