जग का तू कल्याण करो माँ
त्याग कटु वचन सदा मधुर वचन ही बोलें ,त्याग क्रोध, ईर्ष्या को ,अपना जीवन स्वर्ग बना लें ,
माँ ऐसी भावना भर दो।
त्याग माया-मोह के बंधन, एकाग्रचित करे अपने मन को, साधु - संत दीन दुखियों की करूँ सेवा निःस्वार्थ भाव से,
मां ऐसी शक्ति मुझे दो।
परे उठ हम निज स्वार्थ से, करें भक्ति हम प्रेम - भाव से , तेरी भक्ति में चूर रहें हम, पाखंड से सदैव दूर रहें हम,
माँ ऐसी श्रद्धा हमें दो ।
जाति धर्म का भेद ना जानूं , समस्त विश्व को अपना मानूं , अपने लिए मैं कुछ ना मांगू , सबको बस अपना ही जानूं
मां ऐसी सद्बुद्धि हमें दो।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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