एक इशारा बहुत है ,
इंसान को समझाने के लिए ।एक चिनगारी बहुत है ,
आग लगाने के लिए ।।
एक बूॅंद अमृत बहुत है ,
अमर हो जाने के लिए ।
एक बूॅंद जहर बहुत है ,
जीवन मिटाने के लिए ।।
वही होता एक अजनबी ,
जीवन में आग लगा देता है ।
वही होता एक अजनबी ,
जलता आग बुझा देता है ।।
एक अजनबी आता जीवन में ,
आग लगा चला जाता है ।
हृदय धधकता अंदर अंदर ,
मन पागल सा हो जाता है ।।
मिलन हुआ एक बार केवल ,
पहली बार जब वह आया था ।
उतर गया वह दिल में मेरे ,
दूर से चेहरा वह दिखाया था ।।
तब से लड़की जल रही है ,
अंदर अंदर वह आग में ।
दुबारा झलक पाने हेतु ,
घुमती रहती है बाग में ।।
मातापिता अनभिज्ञ पड़े ,
बेटी गुल खिला रही है ।
मातपिता से चुपके छुपके ,
बेटी नयन मिला रही है ।।
पता चला घर से भागी बेटी ,
एक अजनबी के साथ में ।
मातपिता की धज्जियाॅं उड़ीं ,
बेटी एक अजनबी हाथ में ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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