सुबह का कलरव जगाता है।।
डॉ रामकृष्ण मिश्रमुह अँधेरे शान्ति वन में जगा जब पाखी
प्रभा की आगमन वेला का सहज साखी।
जगमगाती अरुण रथ पर ललछही किरणें
प्रगट होतीं और पुष्कर मुस्कुराता है।।
जलधि तल से सम्भवित आकाश का आनन
वाँचता है सुप्त गरिमा युक्त श्री कानन।
प्रेरणा की संबलित आकांक्षा लेकर
चराचर को कर्म का आखर सिखाता है।।
लुप्त होने लगी है भय की अशुभ छाया
क्योंकि ऊपर उठ रही अमिताभ की काया।
नयी ऊर्जा और नव उत्साह का गट्ठर
दान कर उन्नयन का रवि पथ दिखाता है।।
रामकृष्ण
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