यादों का सफर
बहुत दूर है तुम्हारे घर सेहमारे घर का किनारा।
इसलिए हवा के झोके से पूँछ लेते है।
रोज हालचाल कसम से तुम्हारा।।
लोग अक्सर कहते है कि
जिन्दा रहे तो फिर मिलेंगें।
पर मेरी जान कहती है।
की निरंतर मिलते रहेंगे
तो ही जिन्दा रहेंगे।।
दर्द कितना खुश नसीब है
जिसे पा कर लोग।
अपने पराये को समझकर
दिल से याद करते है।
दौलत कितनी वदनसीब है
जिसे पाकर अक्सर लोग।
अपने और अपनो को
निश्चित भूल जाते है।।
इसलिए तो छोड़ दिया हमने।
सबको बिना वजह परेशान करना।
जब कोई अपना समझता ही नहीं।
तो उन्हें याद दिलाकर क्या करना।।
जिंदगी गुजर गई, सबको खुश करने में।
जो खुश हुए वो अपने नहीं थे।
जो अपने थे मेरी जान।
वो कभी खुश हुये ही नहीं।।
इसलिए संजय कहता है।
कर्मो से डरिये, ईश्वर से नहीं।
ईश्वर माफ़ कर देता है।
परन्तु तुम्हारे खुद के कर्म नहीं।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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