माँ का ध्यान करो
हे माँ जगदम्बे सुन लोमोरी एक प्रार्थना तुम।
इस दुनिया से मोहे उठा लो
मुझे पर करो एहसान तुम।
झूठे साँच के चक्कर में देखो
कितने घर द्वारा उजड़ रहे।
फिर भी माँ तुम देखो तो
कैसे माँ बाप को छोड़ रहे।।
देख दुनिया की हालत को
हम अब तो उकता गए है।
अपने मन के भावों को
बस मन में ही दवा रहे।
कहत नहीं कुछ कोऊ से
इस दुनिया के बारे में।
अपने आपको देख रहे
और अपने मनकी सुन रहे।।
कभऊ कभऊ तो देखो माँ
हमरो मन करात है की।
छोड़ चले जाये दुनियां खो
अपने मनखो शांत करन।
अपने मन के विचारो खो
हे माँ हम तुमसे कह रहे है।
और घर-घर पीड़ा खो भी
हे माँ हम तुमसे कह रहे है।।
तनक-तनक सी बातों पे
तुम क्यों रूठ जाऊत हो।
मान मनाऊआ के चक्कर में
अपने दिल खो दुखाऊत हो।
जबकि तुम्हें मालूम है कि
हमें ये सब नहीं आऊत है।
फिर भी अपनों और हमरो
दिल खो बहुत दुखाऊत हो।।
मोरे दिलखो तो तुम समझो
और अपने दिलकी बात कहो।
खुदकी और हमरे मनकी
बातों खो तुम माँ से कह दो।
दिलकी रानी तुम हो मोरी
दिलमें ही तुम राज करो।
छोड़ माँ का ध्यान तुम
क्यों औरो पर तुम ध्यान रखो।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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