एक दीवाना धुन का पक्का ,
अपना धुन जब सवार हुआ ।दीवाना हुआ वह धुन अपने ,
दीवानापन ये स्वीकार हुआ ।।
बनना है एक उच्चाधिकारी ,
पढ़ाई का ही दीवाना हुआ ।
निकाला प्रतियोगी परीक्षा ,
उच्च पद ही उसे पाना हुआ ।।
दीवानापन होता पागलपन ,
दीवानापन तो एक सनक है ।
दीवानापन ही विजयी होना ,
दीवानापन ही यह कनक है ।।
दीवानापन मंजिल को छूना ,
दीवानापन नहीं वहशीपन है ।
दीवानापन ही सफल होना ,
दीवानापन होता उद्दीपन है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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