स्कंदमाता की जय
जय जय जग विदित भवानी ,तुम्हीं कहलाती दुर्गा महारानी ।
नवरात्रि नव रूप नित्य तुम हो ,
नौ रूपों वाली हो स्वाभिमानी ।।
पंचम रूप तुम षडानन माता ,
कार्तिकेय स्कंद जिनका नाम ।
तुम्हीं तो हो भक्तवत्सला माते ,
गिरे भक्तों को लेती तुम थाम ।।
जब जहाॅं जिस भक्त ने पुकारा ,
वहाॅं शीघ्र दौड़कर तुम जाती ।
भक्तों की तुम्हीं रक्षा हो करती ,
अरि पे तुम रौद्र रूप दिखाती ।।
घर घर की अशांति दूर करो माॅं ,
मेरे घर भी आ तुम रमा करो ।
हुई जो मुझसे भूल चूक गलती ,
माॅं मुझ अधम को क्षमा करो ।।
ज्ञान बुद्धि बल विद्या तुम दे दो ,
मुझ मूरख को दे नई पहचान ।
कीर्ति यश जग में फैले ये मेरा ,
पूरन कर दे माता यह अरमान ।।
नमन नमन तुम्हें नमन है माते ,
कोटि-कोटि मेरा तुम्हें नमन है ।
अरुण दिव्यांश की रक्षा करना ,
साहित्य काव्य में मेरा गमन है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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