प्यार अमर है
चाँद सितारे चमक उठे है।देखो तुम आकाश में।
रात की रानी बुला रही है।
आ जाओ तुम बाग में।।
महक उठा घर का आँगन।
रात रानी के फूलो से।
झूम रही रात की रानी
तेरे बस आ जाने से।।
कैसे अपने दिलको समझाए।
हम अब ऐसे मौहल में।
डोल रहा है इधर-उधर मन।
कैसे इसको शांत करे हम।।
रखा कदम जब से तुमने
मेरे घर के आँगन में।
काया ही बदल गई है।
देखो घर के आँगन की।
कर्ज तुम्हारा चढ़ गया है।
देखो आज से मेरे ऊपर।
कैसे इसको उतार पाऊँगा।
अपने इस मानव जीवन में।।
जन्म द्वारा लेना पडे़गा।
तेरा कर्ज उतारने को।
बनकर फिर से तेरा मेहबूब।
प्यार तुझसे करना पड़ेगा।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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