माता का चतुर्थ रूप कुष्मांडा माता
जय जय माता जगत जननी ,जय जय माॅं जगत स्वरूपा ।
देव देवियों से सदा तू पूजित ,
सृष्टि सृजन है कार्य अनूपा ।।
तुम्हीं हो माॅं आदि और अंत ,
तुम्हीं तो हो माते रूप अनंत ।
तुम्हें पूजें सदा ही नर नारी ,
देव देवी साधु ज्ञानी व संत ।।
तुम्हीं हो चतुर्थ रूप बनाई ,
कहलाती हो कुष्मांडा माता ।
तुमको ही वे नमन हैं करते ,
कहलाते जो भाग्य विधाता ।।
तुम्हीं तो हो माॅं आदिशक्ति ,
तुम्हीं तो हो माॅं दुर्गा भवानी ।
तुम्हारी कृपा पे सब आश्रित ,
तुझसे देवों ने है मात मानी ।।
जय जय हे कुष्मांडा माता ,
तुझको मेरा कोटि है नमन ।
विचार का शुभ आकृति दे दे ,
वैचारिक विकृति करो दमन ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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