अपना दीपक स्वयं बन जाना है
प्रतिध्वनि का प्रतिद्वंद्वी मन मेरा,बन सखा लायेगा नया सवेरा।
मिलन वियोग सब मिथक आस,
सूना मन तृषित चातक की प्यास।
पंक में जन्मा इंदीवर तो क्या?
भाग्य उसके श्री चरणों में जाना है।
दिखाये निशा ने जो स्वप्न सलोने,
दिवा में उनको सत्य कर जाना है।
अपना दीपक स्वयं बन जाना है,
तिमिरमय उर में दीप जलाना है।
गहन चिंतन के अथाह सिंधु से,
सीप मुक्ताहल हर के लाना है।
पथ पथरीले,वन सघन है घोर तिमिर,
मार्तण्ड से आलोक चुराना है।
राह में रोके मुझको अतीत की यादें,
तनिक सस्मित तनिक विस्मित वो बातें।
मेरी परिधि का अब मैंने विस्तार किया,
निज व्यथा निज उर में ही बाँच लिया।
अपना सम्बल स्वयं बनना होता,
इस बात को अब मैंने जाना है।
दृग मुक्ता के दाहक अनल में,
असित स्मृतियों को बहाना है।
रीमा सिन्हा
स्वरचित
लखनऊ-उत्तर प्रदेश
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com