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धुआँ-धुआँ है सारा मंडल बच कर कौन कहाँ जाए।

धुआँ-धुआँ है सारा मंडल बच कर कौन कहाँ जाए।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
धुआँ-धुआँ है सारा मंडल बच कर कौन कहाँ जाए।
फैली वारूदी दहसत है बचकर कौन कहाँ जाए।।
सारी धरती कुरु क्षेत्र -सी कौरव दहशतगर्द बने।
शकुनि शत्रु सम्पन्न देश हैं बचकर कौन कहाँ जाए।।
आतंकी निष्ठुरता की मूरत हत्या का आभ्यासी।
गली - गली बहसी संतापक बचकर कौन कहाँ जाए। ।
घर में घुसकर आस्यीन के विषधर उगल रहे विष बीज।
उजले- उजले कुर्ते दागी बच कर कौन कहाँ जाए।।
अब तो आया है बगुलों -गिद्धों से बचने का मौसम।
साहस और जुगाड लगाएँ बच कर कौन कहाँ जाए।।
घर अपना साँपों का डेरा है फिर तो खेलें हम साथ। 
अथवा तहस- नहस कर डालें बच कर कौन कहाँ जाए।।
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