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जीवन सरल नहीं

जीवन सरल नहीं

सृष्ट हुए हैं धरा पर किंतु ,
यह जीवन सरल नहीं है ।
जीवन जीना है अनिवार्य ,
जीवन यह गरल नहीं है ।।
जीवन यह समतल नहीं है ,
जीवन में है उतार चढ़ाव ।
व्यवहार से ही बने बिगड़े ,
व्यवहार से पास व दुराव ।।
जीवन मार्ग उबड़-खाबड़ ,
सोच समझ मार्ग कढ़ना है ।
अंतर्चक्षु से देखकर मार्ग ,
हमें स्वयं ये आगे बढ़ना है ।।
जीवन मार्ग कहीं समतल ,
ईर्ष्या द्वेष में भटक जाते हैं ।
अहंकार रूपी अन्धकार में ,
निज जीवन गटक जाते हैं ।।
क्लेश द्वेष औ रोग बीमारी ,
जीवन मार्ग में ही बाधा है ।
अंतर्द्वंद्व से बाहर न हुए तो ,
ये जीवन ही होता आधा है ।।
अहंकार अमीरी औ गरीबी ,
ईर्ष्या लोभ क्रोध व्याधा है ।
यही होते हैं जीवन बाधक ,
जीवन अनुभव से साधा है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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