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रिश्ते खट्‌टे हो गए

रिश्ते खट्‌टे हो गए

स्वार्थ भरी दुनिया में आज,
क्यों रिश्ते खट्‌टे हो गए।
समझते थे जिन्हें अपना,
क्यों दूर हम से हो गए।

स्वार्थ थी जब तक उन्हें,
रिश्ते निभाते वो रहे।
स्वार्थ सिद्धि होते ही वो,
तन्हाई में मुझको छोड़ गए।

मैं सोंचता ही रह गया,
वो मुस्करा के चल दिए।
पता नहीं क्या सोंचकर,
साथ मेरा छोड़ वो चल दिए।

नाराजगी किस बात की,
सहज समझ सका ना मैं।
नेकी कर दरिया में डाल,
फिर दिल ने ये आवाज दी।


⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजन
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