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निनानबे के चक्कर सब निनान कर देवेला ,

निनानबे के चक्कर सब निनान कर देवेला ,

चोर बेईमान हैवान के पहचान कर देवेला ।
घर होखेला जवन सुंदर पावन ई बगिया ,
घरो के ई जिंदा कुरूप श्मशान कर देवेला ।।
निनानबे के चक्कर में रउआ पड़ब मत ,
निनानबे के चक्कर ई बड़ा खराब होखेला ।
पड़ल रहब रउआ निनानबे के चक्कर में ,
सीधे सौ पूरा करे खातिर ई ख्वाब होखेला ।।
निनानबे रुपया भरल अबहीं बाटे घर में ,
एक रुपया मिल जाए त ई सोझ हो जाई ।
एक के बदला तब आ जाई दू के सिक्का ,
फेर से निनानबे रुपया रउआ जोड़ीं जुटाई ।।
एक रुपया मात्र कम भईल रहे पूरे सौ में ,
एको रुपया कम में रउआ संतोष ना भईल ।
निनानबे रुपया अब रउआ आउर जोड़ लीं ,
अब आउर परेशानी राउर बहुते बढ़ गईल ।।
परेशान रहब रउआ जीवन भर हमेशा ,
रतियो में रउआ कबहुओं नीन ना आई ।
सौ कबहुओं केहुके पूरा कहाॅं हो पईहें ,
कवन पूत कर पईहें एह सौ के भरपाई ।।
निनानबे के चक्कर होखेला मृगतृष्णा ,
परिवार समाज से प्यारो सब तब छिनाई ।
जीवन पूरा बीतल सोझ करहीं में सौ के ,
रउआ तन के दरद दुनिया में के छिन पाई ।।
जन जन थूकिहें तब खाली रउआ नाम पर ,
गाॅंव जवार में खूब होई तब राउर हिनाई ।
मुअलो पर चरचा रही खूबे रउआ दोष के ,
कवनों धन तब रउआ कवनों कामे ना आई ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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