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साहित्य के साधक

साहित्य के साधक

सत्य निष्ठ साहित्य के साधक ,
पावन धरा भी तेरे आराधक ।
हो जाऍंगे नष्ट समूल वे मानव ,
मार्ग में आऍंगे जो बन बाधक ।।
साहित्य ही ईश का अरमान है ,
साहित्य ही ईश का फरमान है ।
साहित्य में गौर से झाॅंक देखो ,
साहित्य में ईश विराजमान है ।।
साहित्य काव्य ही संस्कार है ,
साहित्य काव्य जीवन शृंगार है ।
बना कोई साहित्य का दुश्मन ,
साहित्य काव्य बनता अंगार है ।।
संस्कार का अरि साहित्य अरि ,
साहित्य काव्य भरा संस्कार है ।
लेता रहेगा साहित्य सदा लोहा ,
कभी माननेवाला नहीं हार है ।।
ईश सा तेरा साहित्य व्यापक ,
नहीं आज तक इसका मापक ।
साहित्य जीवन मित्र है होता ,
साहित्य नहीं जीवन घातक ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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