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अब नहीं चिंता कि द्वारे कौन दस्तक दे गया।

अब नहीं चिंता कि द्वारे कौन दस्तक दे गया।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
अब नहीं चिंता कि द्वारे कौन दस्तक दे गया।
खिडकियों से नदी स्नाता हवाएँ आती रहीं।।

दिन नहीं ,वत्सर गुजरते गये गिनती के मगर
आज भी है गुनगुनाता वही कोमल मधुर स्वर।
लाज के परिधान में लिपटी महक गाती रही।।

स्पर्श के संगीत में जब प्रणय राग छिड़ा कभी
ओठ हिलते दिखे लेकिन भाव मुखरित थे नहीं।
ऋचाओं सी गहनता की खूबियाँ भाती रही ं।।

अधजगी पलकें कहानी सी अभी तक याद है
किन्तु मैने - सी चहक की चुप्पियाँ अवसाद है। 
जो तरंगित भावना थी शुभ्र लज्जाती रही।।
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