Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हमलोग यह गलतफहमी पाल रखे हैं,

हमलोग यह गलतफहमी पाल रखे हैं, 

कि हमारा दिल ❤ धड़कता है। 
यह तो बेचारा हमारे शरीर के भीतर, 
एक कैदी है, जो हरदम, 
शरीर के कैद से बाहर भागना चाहता है। 
हमारे सोते जागते, उठते बैठते, 
यह हरदम इस फिराक में रहता है कि, 
कब मौका मिले और भाग जायें। 
उसके इसी संतत प्रयास को, 
हम सब दिल धड़कना समझते हैं। 
कोई भी कैदी चिरोंदिन कैदी बना, 
नहीं रह सकता है। 
एक दिन उसकी रिहाई तो होगी ही। 
और जब यह कैदी दिल, शरीर से, 
रिहा हो जाता है तो, 
यह शरीर रूपी कैदखाना, 
शांत और निष्प्राण हो जाता है। 
यही संबंध कैदी दिल और, 
कैदखाना शरीर का है, 
जिसे हम नासमझ जीवन मृत्यु, 
और दिल का धड़कना समझते हैं।
                   जय प्रकाश कुवंर
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ