हमलोग यह गलतफहमी पाल रखे हैं,
कि हमारा दिल ❤ धड़कता है।
यह तो बेचारा हमारे शरीर के भीतर,
एक कैदी है, जो हरदम,
शरीर के कैद से बाहर भागना चाहता है।
हमारे सोते जागते, उठते बैठते,
यह हरदम इस फिराक में रहता है कि,
कब मौका मिले और भाग जायें।
उसके इसी संतत प्रयास को,
हम सब दिल धड़कना समझते हैं।
कोई भी कैदी चिरोंदिन कैदी बना,
नहीं रह सकता है।
एक दिन उसकी रिहाई तो होगी ही।
और जब यह कैदी दिल, शरीर से,
रिहा हो जाता है तो,
यह शरीर रूपी कैदखाना,
शांत और निष्प्राण हो जाता है।
यही संबंध कैदी दिल और,
कैदखाना शरीर का है,
जिसे हम नासमझ जीवन मृत्यु,
और दिल का धड़कना समझते हैं।
जय प्रकाश कुवंरहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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