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जीवन के सोपान

जीवन के सोपान

डॉ.अंकेश कुमार,पटना(बिहार)
परंपराएं बदलती हैं।
संस्कार बदलते हैं।
संस्कृति बदलती है।
भाषा बदलती है।
भूदृश्य बदलते हैं
सीमाएं बदलती हैं।
आवोहवा बदलती है।
रंग रूप बदलते हैं।
समझ बदलती है।
सभ्यताएं बदलती हैं।
नही बदलते हैं तो वो हैं,
सुख-दुख के एहसास।
तब कहता हूं -
धरती कभी नहीं कहती है,
मेरी गोद से परे हटो तुम।
चांद नही रहता इस भाव में,
भूल न जाना मुझको तुम।
अपने प्यार को बड़े प्यार से,
देखो तकते दो हृदय, भाव से।
पढ़ते जब नयनों को अपने
कहते छूट न जाना तुम ।
नदी सागर सा प्यार अमर हो!
अपना घर संसार अमर हो!
स्नेह का बंधन अमर रहे!हो पुष्प गंध सा दिक दिगंत!
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