माँ केवल जनती है बच्चे,
अछूत और ब्राह्मण नही।तुम चाहते हो बने रहना अछूत
लाभ व मुफ़्त सुविधाओं के लिये
और ब्राह्मण करता है मेहनत
अस्तित्व बचाने व कुछ पाने के लिये।
स्वर्ण भी कहाँ चैन से सोते हैं
बच्चों में संस्कार संस्कृति
सभ्यता के बीज बोते हैं।
सिखाते हैं बच्चों को पढ़ना
योग्य बनना फिर अस्तित्व गढ़ना।
क्योंकि नहीं है उनके लिये आसान
जीवन पथ पर बढ़ना,
निज पहचान बनाना।
सब जगह आरक्षण के कारण
योग्य होकर भी पिछड़ते जाना
फिर भी स्वाभिमान से राष्ट्र हित
उद्योग व्यापार बढ़ा पहचान बनाना।
धर्म कर्म मन्दिर धर्मशाला स्कूल
सम्पन्न भूखों के लिये भन्डारे तथा
आयकर व्यापार कर जुटाना
अपना कर्तव्य मानते हैं।
सच मानो
जिस दिन देश में योग्यता को
मान मिलने लगेगा
प्रतिभाओं को सम्मान मिलने लगा
उस दिन एक बार पुनः
भारत विश्व गुरू होगा।
अ कीर्ति वर्द्धन
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