सरकार का जलाल फीका पड़ रहा है,
जासूसों का कमाल फीका पड़ रहा है।यूँ ही तो पत्थर नहीं बरसते यात्राओं पर,
क़ानून का धमाल फीका पड़ रहा है।
है बड़ा षड्यंत्र देश में, पहचान लो,
घर में छिपे भेड़ियों को, पहचान लो।
संरक्षण दे रहे भेड़ियों को लोग कुछ,
बकरियों के भेष में कुछ, पहचान लो।
हर गाँव नगर की सीमाओं पर क़ब्ज़ा किया,
मदरसों मस्जिदों में जेहादियों ने क़ब्ज़ा किया।
संवेदनशील जगहों पर बनी मस्जिद मज़ारें,
इस्लाम का परचम फहराने को, क़ब्ज़ा किया।
रक्तबीज की तरह, फसलें इनकी उग रही,
बच्चों के मन नफ़रतें, दानवता भी बढ़ रही।
क्या कहें कैसे कहें, किससे कहें दर्द की इन्तिहां,
ज़ख़्म अपनों ने इतने दिये, मानवता सिसक रही।
अ कीर्ति वर्द्धन
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