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मां की महिमा

मां की महिमा

माँ दुर्गे बैठी क्यों तू मुस्करा रही है,
देखो तुम्हारे भक्तन आंसू बहा रहे हैं।
रहे ना वो भक्त,ना रही अब वो भक्ति,
व्यभिचार ही है अब उनकी बड़ी शक्ति।

त्याग धर्म के रास्ते, कुकर्म कर रहे हैं,
दो रोटियों के वास्ते दर-दर भटक रहे हैं।
पुजारी के नाम को वो बदनाम कर रहे हैं,
पूजा की आड़ में वो दुष्कर्म कर रहे हैं।

हर लो मां इनकी कुमति, सुमति इनमें भर दो ,
भटके हुए भक्तों को तू सही राह पर ला दो।
यही मेरी है प्रार्थना, माँ तू इसे स्वीकारो,
अपने दुःखी भक्तों को, तू कष्टों से उबारो ।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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