जीवन का महत्व
सृष्टि द्वारा सृष्ट जगत में जितने भी जीव जीवन पाए हैं , जीवन का महत्व तो उत्कृष्ट है ही , किंतु मानव का जीवन यह सर्वोत्कृष्ट होता है । यह सर्वोत्कृष्ट इसलिए नहीं कि मानव बलशाली है , मानव समझदार है । बल्कि इसलिए कि सारे जीव मानव पर ही आधारित हैं , वे मानव के दया के पात्र हैं । ईश्वर ने मानव को इसलिए नहीं बनाया है कि उसकी हत्या कर दो , इसलिए नहीं बनाया कि उसे मारकर खा जाओ । ईश्वर ने हमें सूझबूझ इसलिए दिया है कि समस्त जीवों की रक्षा करो , ज्ञान दिया है कि दयावान बनो , सभ्य , शिष्ट परिश्रमी और निष्ठावान बनो ।
जीवों की सृष्टि से पहले ईश्वर ने यह धरा बनाई , धरा को सुंदर पावन बगिया बनाई और उस सुंदर पावन बगिया की सुरक्षा हेतु अनेक जीवों को सृष्ट किया तथा बगिया और उन समस्त जीवों की रक्षा तथा देखभाल हेतु ही ईश्वर ने हमें मानव का रूप देकर ज्ञान बुद्धि देकर इस धरती पर उतारा ।
यदि मानव शब्द को विपरीत करके देखें तो होता है -- वनमा अर्थात वन में अर्थात वन और वन में रहने वाले की भी देखभाल करना । दूसरे तरफ मानव शब्द दो शब्दों की संधि करके बना है -- मा नव । अर्थात मा का अर्थ होता है ' मुझे ' और ' नव ' का अर्थ होता है ' झुकना ' या ' झुकाना ' । अर्थात ' मुझे झुकाओ ' । इसका तात्पर्य यह नहीं कि बल पूर्वक हमें झुकाओ । इसका तात्पर्य यह होता है कि दया करके , उपकार करके , सहयोग करके हमें झुकाओ । मनु के मान को बरकरार रखने वाला मनुष्य और मनुष्य के मान को बरकरार रखने वाला मानव कहलाता है , किंतु जिस मानव में मानवता नहीं हो , वह मानव नहीं राक्षस बन जाता है ।
मानव मान तू रख रे मन ,
मानव मान तू यह रख ।
मानव जीवन है सर्वोपरि ,
दैत्य सम न बढ़ा नख ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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