महाष्टमी-विमर्श
मार्कण्डेय शारदेय:
बार-बार लोग पूछ रहे हैं कि अष्टमी कब है? महाष्टमी का व्रत कब है? नवमी कब है? तो ; अष्टमी 10 अक्तूबर (गुरुवार) को प्रातः 7.30 से 11 अक्तूबर (शुक्रवार) को प्रातः 6.52 तक है।इसके बाद (11 अक्तूबर, शुक्रवार को) नवमी प्रारम्भ हो जाती है।12 अक्तूबर (शनिवार) को सूर्योदय से ही दशमी प्रविष्ट हो जाती है।यानी; शनिवार को पूरी दशमी है।
चूँकि 10 अक्तूबर को सप्तमीविद्धा अष्टमी है, इसलिए जो केवल महाष्टमी का व्रतोपवास व महागौरी की राजोपचार से पूजा करते हैं, उनके लिए इस दिन उपयुक्त नहीं।हाँ; जहाँ निशापूजा होती है, खासकर शक्तिपीठों में व दुर्गापंडालों में लोग मध्यरात्रि में व्याप्त अष्टमी को ही पूजा-आराधना करते हैं, वे गुरुवार को ही करेंगे।अष्टमी-महाष्टमी का व्रत-पूजन 11 अक्तूबर को ही है।अष्टमी-नवमी के योग को उत्तम व शिवगौरी योग माना गया है।इसलिए आप नवमी के प्रवेश होने पर भी महागौरी की पूजा-आराधना कर सकते हैं।
अब रही नवमी की तो 11 अक्तूबर (शुक्रवार) को सुबह 6.52 के बाद से नवमी प्रारम्भ हो जाती है तो प्रातः 6.52 से ही हवन, कुमारी-पूजन करें।कुछ लोगों का प्रश्न है कि हम हवन-कुमारी पूजन करने के बाद प्रसाद-ग्रहण करते (नवरात्रव्रत का पारण करते हैं) तो उस दिन अष्टमी मानेंगे तो पारण कैसे करेंगे? इसका उत्तर है कि शास्त्रानुसार नवरात्रव्रत का पारण दशमी को होता है।तो भी यदि आप परम्परा से नवमी को ही हवन आदि के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं तो इस बार दशमी को ही करें। कन्यापूजन का प्रसाद फ्रिज में रख दें या प्रसाद-रूप में बचे पूर्ण फल का व अन्नमय मिष्टान्न का पारण में अन्न के साथ प्रयोग कर लें।
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