ऋष्यमूक-निपतित सीता के नूपुर
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
विस्फूर्जित मंजीर गिरे गिरि-ऊपर,
जनककिशोरी के क्रन्दन से तारापथ थर-थर-थर।
ऋष्यमूक रह गया मूक क्या करे हाय,
यातुग्रस्त धरती की बेटी कुररी-जैसी कातर ।
नादब्रह्म -विस्फ़ोट दिशा-भंजन से,
तार गिरा-वीणा के मानो गिरे टूट दो,गिरि पर ।
रही कलेजा फाड़ देखती धरती,
कर आहत चीत्कार एक पल अब नूपुर चिर अमुखर।
प्राण-पपीहे रटते सीता-सीता,
दृग -आलोड़ित अश्रु-सिन्धु में ध्यान-मीन उत्प्लुततर।
श्रीपद -विरहित नूपुर आहत लख कर,
उर से लगा लिये राघव ने,मुँदे नयन झर-झर -झर।
पूर्वराग-उल्लसित कुसुम-कानन में
उत्सर्जित शिंजन से खरतर अगणित काम-कुसुम-शर।
विद्ध रह गए थे चकोर-से लखते
चित्रलिखित-से मदनदहन के दहर-कमल के मधुकर।
उन चरणों की राह देखते अपलक,
पल वियोग के समाधिस्थ हो काटेंगे अब प्रतिपल।
नन्दिग्राम में जैसे भरत वियोगी,
नूपुर भी अजपा-जप संतत करते तप में तत्पर।
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