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भारतीय ज्ञान और इसकी प्रासंगिकता

भारतीय ज्ञान और इसकी प्रासंगिकता

✍️ डॉ.अंकेश कुमार,पटना
आधुनिक युग के ज्ञान, विज्ञान और कौशल का विकास पिछले 200 वर्षों में वैश्विक पटल पर बहुत तेजी से विकसित हुआ है, साथ ही युद्ध की विभीषिका भी यह ग्रह झेला है, अपितु झेल रहा है। यूक्रेन, रूस, इजराइल, फिलिस्तीन, इराक, ईरान, कुवैत, लेबनान, सीरिया, भारत के कमोवेश उत्तर पूर्वी भाग में युद्धरत मानवता शांति चाहती है। कुछ विद्वानों का मानना है कि वेदों में सबकुछ है और जो नही है वो कुछ नही है।
विज्ञान में जो भी आविष्कार अब हो रहे हैं, मानवता के लिए चुनौती के रूप में उभर रहे हैं। मानवता, संवेदनशीलता से परिपूर्ण प्रज्ञा के स्तर पर शायद ही खड़े उतरे। वैज्ञानिक भी अब मानने लगे हैं।
अभी नोबेल पुरस्कार के लिए चयनित जेफ्री हिंटन महोदय का भी यही मानना है। पूर्व में आइंस्टीन का भी वक्तव्य यही था। एटमी बम के संहार को दुनिया देख चुकी है। खुद डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबल ने सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने हेतु यह पुरस्कारों की श्रृंखला "नोबेल" की नीव रखी।
ऐसा भारतीय दर्शन ने भी कई युद्धों से गुजर कर अनुभव किया है। तभी तो भारतीय दर्शन, तर्क और विज्ञान में नीति, अनुशासन, व्यवहार, मानवता और धर्म को विशेष स्थान प्राप्त है।
भारतीय धर्म, त्योहार,रीति रिवाज में अद्भुत समन्वय है। समाज के उत्थान हेतु इसकी प्रकृति विशुद्ध समावेशी है।
फिर जिसने इस स्वरूप का दर्शन कर लिया और इस परिवेश में अपना उत्सर्ग किया वो कालजयी हो गए।
भारत के रत्न यशश्वी उद्योगपति की स्मृति को प्रणाम करते हुए बड़े गर्व से कह सकता हूं कि उनके होने का सुख भारतीय और वैश्विक पटल पर भी रहती दुनिया तक लोग इसे शिद्दत से महसूस करेंगे।
हमारा विज्ञान, हमारे विषय, भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए धरोहर हैं, तभी तो हमारा चिंतन, भाषा, विज्ञान, पर्यावरण, अध्यात्म, चिकित्सा, संगीत, भक्ति से जुड़ने के लिए विश्व स्तरीय कई विश्विद्यालय संचालित हो रहे थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा एवं व्यापक रूप से लाखों गुरुकुल ज्ञान की ज्योति को प्रकाशमान कर रहे थे। तब हम यह आदर्श वाक्य कहते हैं , वसुधैव कुटुंबकम्। संकेतों में अंकन प्रणाली बाद में विकसित हुई। हमारे शास्त्रों में 108 प्रकार के विषयों का विषद और गहन अध्ययन का अवसर मिलता है,जिसमें ज्योतिष, तत्व,दर्शन, समाज, धर्म, खगोल, भूगोल, इतिहास, युद्ध, उपासना, वर्जना, पूजा पद्धति, चिकित्सा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, जलवायू, कृषि, धातुकर्म, प्रावैधिकी, वनस्पति, जंतु, वाणिज्य, आयुध, समय, नाभिकीय विज्ञान,इहलोक, पारलौकिक,वास्तुशास्त्र, अरण्य, सुख, माया, चेतना, गंधर्व, गुप्त विद्या, धनविद्या, संगीत, नाट्यशास्त्र, गायन विद्या, कला शिल्प, मूर्तिकला, भित्ति चित्र, अन्नसंरक्षण, उत्पाद, कर विज्ञान, न्याय, शिक्षा, अस्त्र विद्या, शास्त्र विद्या, ज्यामितीय स्वरूप, अभियांत्रिकी, अग्नि, जल विज्ञान, वायु पुराण योग, व्यक्तित्व निर्माण, नीति शास्त्र, धर्म शास्त्र , समुद्र शास्त्र आदि विषय भरे पड़े हैं। पढ़ने को ज्ञान अर्जन को बहुत सारे विषय हैं। समय अभाव में हम इसे समेट रहे हैं। कहिए तो काल्पनिक कुछ भी नहीं।जो आप कविता भी लिख रहे हैं अपनी कल्पना से तो उसके पोर पोर में वास्तविकता समाहित है जो आपकी संवेदना में है। बस साहित्य के विभिन्न विधाओं का आलंबन लेकर उस वास्तविकता को आप जीवंतता प्रदान करते हैं।इतना ही नहीं उसे देश काल की सीमा से परे ले कर जाते हैं।
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