दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में
जन ह्रदय पुनीत पावन,सर्वत्र स्नेह प्रेम सम्मान।
कलयुग रूप त्रेता सदृश,
अयोध्या सम सारा जहान।
मर्यादा पुरुषोत्तम दिग्दर्शन,
आराधना स्तुति वंदन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।
चतुर्दश वर्ष वनवास इति श्री,
रघुनंदन साकेत वापसी अनूप ।
मनुज सर्व जीव जंतु विभोर,
विस्मृत निशि दिन छाया धूप ।
जीवन आनंद सार बिंब,
बस रघुराई चरण स्पंदन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में।।
स्वस्थ स्वच्छ सारा परिवेश,
सकारात्मक आचार विचार ।
प्रकाश जीवन दर्शन अब ,
सघन तिमिर विलोप विहार ।
हर आहट स्वर राम मय ,
शुभ मंगल अर्थ मंथन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।
शुद्ध सात्विक जन धारा,
शीर्ष धर्म परंपरा संस्कार ।
चरित्र आदर्श राह गमन,
अपनत्व अंतर्संबंध आधार ।
रीति नीति उत्तम शोभना ,
सृष्टि दृष्टि राम आभा रंजन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।
* कुमार महेंद्र*
(स्वरचित मौलिक रचना)
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