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धर्म शास्त्रों में मानव की,

धर्म शास्त्रों में मानव की|

अ कीर्ति वर्द्धन
धर्म शास्त्रों में मानव की, चार जातियाँ बतलाई,
कर्म आधार निर्धारण की, व्यवस्था भी समझाई।
अनुलोम विलोम भी सम्भव, था योग्यता पर निर्भर,
ऋषि मुनियों की व्यवस्था, नेताओं ने धता बताई।
वर्ण व्यवस्था नाम दिया था, शास्त्रों में कर्म का,
कालखंड में हारे राजा को, आदेश शुद्र कर्म का।
व्यापार खेती पशु पालन, वैश्य को अधिकार मिला,
बाहुबली क्षत्रिय, ब्राह्मण भंडार शिक्षा ज्ञान कर्म का।
बाँटो राज करो की नीति, अंग्रेजों ने अपनायी,
सत्ता के भेड़ियों को भी, नीति बहुत मन को भायी।
अगडे पिछड़े सवर्ण दलित, हिन्दू मुस्लिम में बाँटा,
बाँट बाँट बाँटने की नीति, भाई से भाई तक आयी।
अब अगडों में पिछड़े बाँटे, पिछड़ों में भी अगडे छाँटे,
कल तक थे जो भाई भाई, स्वार्थ देख उनको छाँटे।
हिन्दू मुस्लिम और ईसाई, तीन धर्म ही यहाँ प्रमुख थे,
सत्ता के नापाक इरादे, हिन्दू से सिक्ख जैन को छाँटे।
जाने कितने धर्म बना दिये, खेल खेलने वालों ने,
कितने ओ बी सी में छाँटे, खेल खेलने वालों ने।
किसी राज्य कोई पिछड़ा, कहीं वही होता अगड़ा,
मकडजाल में उलझा डाला, खेल खेलने वालों ने।

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