थक कर दिन सो गया टाट पर
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
थक कर दिन सो गया टाट पर,
रात पोंछती रही पसीना ।
मावस में खो गई चाँदनी,
मरण-तुल्य चाँद का जीना।
मानवता का द्वार कपाटित,
खड़ा रह गया धर्म भिखारी ।
अहिरावण ने रामचन्द्र की
बलि देने की की तैयारी।
धर्म-पितामह क्लीब-सरीखे,
जनसत्ता द्रौपदी-सरीखी।
संविधान-परिधान-विकर्षण,
दुश्शासन ने नीति न सीखी।
पानी ही मर गया देश का,
बेड़ा गर्क अगर होने दो।
खड़े खड़े देखें सनातनी,
लाज खो रही तो खोने दो।
('दुश्शासन' द्व्यर्थक है,श्लेष (double entendre)है,अतः 'दुश्शासन =1.दुर्योधन का भाई 2.दुष्ट शासन)।
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