क्या पता कल थे कहाँ हम|
चितरंजन 'चैनपुरा'
क्या पता कल थे कहाँ हम और कल होंगे कहाँ !
हम न होंगे तुम न होगे फिर भी यह होगा जहाँ ll
कोई न समझे कभी जग की पुरानी रीत यह l
देह नश्वर जीव क्षणभंगुर क्षणिक है प्रीत यह ll
हम रहें या न रहेंगे किन्तु यह होगा जहाँ ll
क्या भरोसा जिंदगी का दीप की लौ की तरह l
धार में तिनके की भाँति जाय कब किस ओर बह !
साँस की थम जाये डोरी जब जहाँ तैसे तहाँ l
हम न होंगे तुम न होगे किन्तु यह होगा जहाँ ll
जग अनूठा देख अंदर और बाहर नैन से l
जब तलक रहना है रह ले चार दिन चितचैन से ll
चल दिये तो फिर न होगा लौटकर आना यहाँ l
हम रहेंगे या रहें न फिर भी यह होगा जहाँ l
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