परिश्रम सफलता की कुंजी है
जिस जीवन में श्रम न हो ,
वह जीवन स्वयं भार है ।
जीवन होता जिंदा लाश ,
रोगों का सहता मार है ।।
इस सृष्ट जगत में जीवन का मूल्य बहुमूल्य है । ईश्वर ने हमें सृष्टि में भेजकर जीवन दिया है , लेकिन इस जीवन का उद्देश्य बहुत बहुत बड़ा होता है । जीवन का उद्देश्य यह नहीं होता कि का लो , पी लो , ऐश कर लो या जीवन को भूखे ही सोकर व्यतीत कर लो , बल्कि जीवन का मूल उद्देश्य होता है जीवन का संरक्षण करना । इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि केवल अपना जीवन ही संरक्षित करना । जीवन का मूल उद्देश्य होता है जीवन को संरक्षित करना अर्थात इस धरा पर जितने भी जीव सृष्ट हुए हैं उन सबका जीवन संरक्षित करना ।
समस्त जीवों के जीवन को संरक्षित करने के लिए सर्वप्रथम अपना जीवन सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है और अपना जीवन सुरक्षित रखने के लिए परिश्रम होता है । जिस प्रकार जीवन का मूल्य बहुमूल्य होता है , उसी प्रकार जीवन को स्वस्थ रखने के लिए परिश्रम भी बहुमूल्य होता है । परिश्रम भी वह जो सार्थक हो और दृढ़ संकल्पित हो तथा परिश्रम में निष्ठा हो ।
परिश्रम से ही क्षुधा जगती है , गहरी नींद आती है तब हमारा यह शरीर स्वस्थ रहता है और हम दीर्घायु जीवन जीने में पूर्णतः सफल होते हैं ।
जब हम कोई भी विशेष कार्य करने हेतु कदम आगे बढ़ाते हैं तो उसके लिए हमें दृढ़ संकल्प लेकर निष्ठा और लगन पूर्वक निरंतर अग्रसरित होना पड़ता है , तभी हमें उस कार्य में भी सफलता प्राप्त हो पाती है ।
इससे यह स्पष्ट होता है कि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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