प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं
तन मन विमल मृदुल,मोहक अनुपम श्रृंगार ।
पूर्णता बन संपूर्णता ,
रिक्तियां सकल आकार ।
भोग पथ परित्याग पर,
अभिस्वीकृत योग कामनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।
चाह दिग्भ्रमित राह पर,
सघन तिमिर आच्छादित ।
निज स्वार्थ प्रभाव क्षेत्र,
सोच विचार विमंदित ।
दमन चक्र दामन पर,
नित्य आहत भावनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।
नयनन भाषा पटल,
कामुकता अति दूर ।
नैतिकता स्नेह आलिंगन,
पाश्विक मूल चकनाचूर ।
चिंतन मनन लघुता पर,
सदैव दम तोड़ती कल्पनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।
अंतर्मन कालिख छवि,
अब विलुप्ति कगार ।
मद मस्त वाहिनियां,
प्रसुप्त जीवन आधार ।
यथार्थ दिव्य स्पंदन पर,
सज रहीं मिलन अल्पनाएं।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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