विजयदशमी बीत गइल।
जय प्रकाश कुवंरविजयदशमी बीत गइल।
एहू साल रावण मारा गइल।।
इ हर साल राम जी,
रावण के मारत बाड़े।
अगिला साल रावण,
फिर उठ के राम के ललकारत बाड़े।।
लोग समझल जे त्रेता में,
रावण मारा गइल।
बाकिर एही जागा लोग से,
भारी एगो भूल भइल।।
रावण राक्षस ह, बुराई ह,
इ कवनो युग में खतम ना होला।
एगो रावण मरेला,
तो दुसर एगो खाड़ा होला।।
राम अच्छाई हउअन,
रावण बुराई ह।
कुछ दिन बुराई सतावेला,
बाकिर अच्छाई से उ,
कबहूँ पार नाहीं पावेला।।
एही से बुराई हर साल दशहरा में,
रावण के रूप धरेला।
अच्छाई रूपी राम से लड़के,
बाकिर फिर से उनहीं के हाथों मरेला।।
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